Dead bodies are altering the water and Earth chemistry of Ganga - water. बनारसमें सीवर व केमिकल का पानी तथा लाशों के विघटन (Decomposition) के कारण हरा हो रहा है - गंगा का पानी
Date - 14th June 2021
Time - 8:00 p.m
बनारसमें सीवर व केमिकल का पानी तथा लाशों के विघटन (Decomposition) के कारण हरा हो रहा है - गंगा का पानी
Actual photo captured by our technical team from June 10 to June 14, 2021.
गंगा भारत की सबसे पवित्र नदी है, जिसकी एक अरब से ज्यादा इंसान देवी के रूप में पूजा करते हैं। यह वह नदी है- जिसका "गंगाजल" मनुष्य की आखिरी साँस से पहले - मनुष्य के मुँह में देने की परंपरा - हमारे देश में आज भी कायम है। 47% फीसदी भूमि की सिंचाई और 50 करोड़ लोगों को भोजन भी प्रदान करती है। इन महत्वो के बावजूद यह दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक हैं। पर्वतों से उतरने के बाद नदियो के सभी हिस्सों "शौच" में पाए जाने वाले कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया का लेवल; जैविक व रासायनिक ऑक्सीजन की मांग और कैसिनो जैनिक रसायनो की बहुत्तता इतनी अधिक रहती है कि नदी का पानी - पीने योग्य नहीं रह जाता और ना ही स्नान करने के लिए भी उपयुक्त समझा जाता।
ऐसे में गौरतलब करने की बात अचानक यह आ जाती है कि बीते दिनों कोरोना की हार की वजह से - गंगा में बहते हुए शवों की वजह से तमाम पर्यावरण - विद्वान और समाचार माध्यमो में गंगा के पानी को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी उसके बाद गंगा का पानी बनारस से लेकर बक्सर तक हरा हो गया। कई जगह उसमें "काई" पाई जाने लगी। इससे साफ लगता है कि गंगा के पानी परवाह खत्म हो गया हैं।
बनारस(Banaras) में सिंधिया घाट से लेकर राजा घाट तक गंगा का पानी हरा हो गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार शैवाल (Algae) के जमा होने से पानी का रंग बदल गया है। यह गंगा में रहने वाले जीवों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसको देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी जांच में जुटी गए हैं।
चूँकि बरसात के मौसम से पहले वाराणसी में गंगा के कुछ हिस्सों में यह नजारा हर साल देखने को मिलता है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब पूरी गंगा नदी का पानी हरा रंग का हो गया हो। यह कोई साधारण बात नहीं हो सकती। भले की B.H.U के कुछ वैज्ञानिकों को माइक्रोबीयल माक्रोसिस्ट लगता हो जो हर साल माइक्रोसिस्ट अनुमन ठहरे हुए पानी या नाले में ही पाए जाते हैं। और यह उनको लगता है और देखा गया है कि रुके पानी में ज्यादा तेजी के साथ बढ़ते हैं।
हालांकि अभी गंगा में बहाव कम है इसलिए वैज्ञानिको को लगता है कि आसपास के किसी नाले से शेवाल आया होगा जबकि असल बात कुछ और ही है।
Spraying to remove Green Algae.
गौरतलब बात यह है कि पहले अस्सी घाट से लेकर ललिता घाट तक गंगा का पानी हरा नहीं था। अब उसके आगे के घाटों में भी हरा पानी दिख रहा है। गौर से देखें तो तेज हवा चलने के कारण बाकी घाटों में भी पानी हरा नजर आने लगा है।
" Ganga water has the special to fight Bacteria and its water never rot"
वाराणसी में एक दो घाटों पर नहीं पर बल्कि 84 घाटों में से ज्यादातर पर गंगा का पानी हरा हो चुका है। यह हरा पानी और हरा शैवाल(Algae Boom) बेहद जहरीला(Toxic) है। इस पानी का अगर उपयोग किया गया तो दिमाग, चमड़ी के रोगों व खून संबंधी दिक्कतें हो सकती है। क्योंकि इसमें माइक्रोसिस्टिस (Microeystis) नाम का साइनो-बैक्टीरिया होता है।
हमारी प्रसिद्ध पर्यावरण-प्रदूषण
वैज्ञानिको की टीम ने बताया है कि गंगा में हरे शैवाल तब ज्यादा दिखते हैं जब अचानक न्यूट्रिएंट्स बढ़ जाते हैं। अभी अचानक न्यूट्रिएंट्स बढ़ने का कारण कही दूसरा हो सकता है क्योंकि अभी उपजाऊ भूमि का पानी भी बहकर गंगा में नहीं आया। बहुत ही अच्छी मात्रा में न्यूट्रिएंट्स मिलने से फोटोसिंथेसिस करने लगता हैं। इस न्युटीएट्स अच्छी मात्रा में फास्फेट, सल्फर और नाइट्रेट मिलते हैं।
हरे शैवाल की मात्रा अधिक बढ़ जाती है। अगर पानी स्थिर होता और साफ रहता है तो सूर्य की किरणे गंगा नदी के तट (Bottom level of River) तक जाती है जिसकी वजह से फोटोसिंथेसिस बढ़ जाता है।
अप्रैल-मई महीने में Photosynthesis की प्रक्रिया में बढ़ोतरी होती है क्योंकि उस वक्त गंगा में पानी का बहाव कम होता है। ठहरी हुई नदियों में एलगल ब्लूम यानी "काई" का पनपना आम बात है। ध्यान देवें कि नदी का इको सिस्टम खुद को बैलेंस (Balance) करता है जो कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। ज्यादा टॉक्सिक पानी यानी जहरीले पदार्थ के पानी के बहाव से चर्म रोग और पानी से लीवर की समस्या होनी आम बात है। इस तरह के पानी के उपयोग से बचना - चाहिए - बचना चाहिए।
50 साल से अधिक तजुर्बा रखने वाले पर्यावरण विद्वान और BITS पिलानी से शिक्षा प्राप्त इंजीनियरस की टीम (A) मनमोहन कोठारी जयपुर ; (B) H.H. Chanchani , Vadodara ओर (C) नरेंद्र सक्सेना , U.S.A ने बतलाया है कि यह एक विशेष प्रकार की एलगल ब्लूम है जो अधिक मात्रा में पानी में Neutraints पाए जाने से बनती है। इस न्यूट्रैन्ट्स के अधिक पाए जाने वाले Souraces का पता लग जाए तो - हरे पानी होने का उत्तर (Answer) साफ शब्दों में मिल जाएगा।
गंगा नदी के प्रदूषित जल पर पैनी नजर रखने वाले तकनीकी टीम के तजुर्बेकार इंजीनियर श्री चंद कास्ट (गोरक्षक) - जयपुर ने , प्रदूषित गंगा नदी जल के तकनीकी तथ्य जब Public Health Engineering Branch के 45 साल के expert advisor भंवरलाल गहलोत रिटायर्ड - अधीक्षण अभियंता के सामने रखें तो उनका कहना था कि गंगा नदी जल मैं यूट्रॉफिकेशन प्रक्रिया होने से हरे शैवाल बनते हैं। यह तब होता है जब पानी में न्युटीएट्स की मात्रा - किन्हीं कारणों से बहुत अधिक बढ़ जाती है। इससे गैरजरूरी जीवों की संख्या में अप्रत्याशित - अप्रत्याशित रूप में वृद्धि होती है। इस स्थिति में शैवाल को प्रकाश संश्लेषण करने का सबसे उपयुक्त वातावरण मिलता है और इनकी वर्दी इतनी जल्दी होती है कि देखते ही देखते - पानी का रंग बदलकर हरा हो जाता है। नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा निर्धारित मानकों से बहुत ही अधिक हो जाती है जो हरे शैवाल बनने में अति उत्तम न्यूट्रिएंट्स होता हैं।
Dead bodies are altering the water and Earth chemistry of Ganga - water.
Yes; our dead bodies are altering water and earth chemistry's whether our bodies are buried or float in river - or sea's water.
They leach Iron; zinc; sulphur; calcium and phosphorus into the soil as well as in water; whatever may be the case.
They are very very essential nutrients. In some places on earth or water; The nutrients may be over-concentrated for optimal absorption by algae Bloom plant and features while linking in others.
The effect of essential nutrients will become more pronounced as more and more dead bodies are laid to float.
Decomposition of the body or any substance in the process by which dead organic substance are broken down into simpler or inorganic matter such a carbon dioxide; water; simple sugar and mineral salt.
Decomposition Can also be a gradual process for organisms that have an extended period of dormancy.
Decomposition of the animal body or human body begins at the moment of death and caused by two factors:-
(1) Autolysis, the breaking down of tissue by the body's own chemicals and enzymes, and the chemical dissolved in a river Ganga.
(2) Putrefaction The breakdown of tissues by bacteria. The bacterias - are available in Ganga - river's impure and unhealthy water. The Prime decomposers are Bacteria and fungi, through larger scavengers also play an important role in decomposition - it the bodies is accessible to insects; mites; and other animals - which are present in Gangas impure water.
Five general stages are used to describe the process of decomposition in vertebrate animals and the human body
(1) Fresh
(2) Bloat
(3) Active decay
(4) Advance decay
(5) Dry remains
अशुद्ध गंगा के पानी में हरा शैवाल पहले से ही मौजूद रहता है। जो समय के साथ विकसित होता रहता है। चूंकि जानवरों और इंसानों की Dead Bodies - जब Decomposed होती है तो न्यूट्रिएंट्स की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। हमारी टीम मेम्बरों की स्पष्ट राय थी कि पानी में एल्गम ब्लूम की वृद्धि के लिए अप्रैल-मई का तापमान, बहुत उपयुक्त होता है और एल्गम ब्लूम को विकसित करने में सहायक होता है। उपयुक्त तापमान व नम हवाएं ,जानवर और इंसानों के शवों को Decompose करने में अति से अति शीघ्र मदद करती है,जिससे गंगा नदी के पानी की केमिस्ट्री ही बदल जाती है - जो एल्गम ब्लूम की मात्रा बढ़ने में पूर्ण सहयोग करती है - इससे गंगा नदी का पानी हरा हो जाता है।
गंगा नदी का जलस्तर कम होने और प्रवाह नहीं होने से शैवाल की समस्या ज्यादा गंभीर हो गई जो कि जलस्तर बढ़ने के साथ तथा नदी का प्रवाह तेज होने पर यह समस्या दूर हो जाएगी- परंतु इस समय कुछ ज्यादा ही लगेगा - कृपया ध्यान देवें।
वाराणसी से मिर्जापुर व बनारस से बस्तर 133 किमी नदी का फासला कोई छोटा नहीं है। संपूर्ण रूप से पानी हरा होना - सिर्फ और सिर्फ इसी बात का प्रमाण है कि - नदी के पानी की केमिस्ट्री ही एकदम बदल गई, जिससे न्यूट्रिएंट्स की मात्रा में अनापशनाप , की बढ़ोतरी के कारण हरे शैवाल का पनपना - एक समस्या बन गई जो समय और नदी के तेज प्रवाह के कारण कम हो जाएगा।
विंध्याचल में पुरानी तकनीक से बने एसटीपी से यह हरा शैवाल बहकर वाराणसी भले ही आ रहा हो - परंतु आने वाले का एसटीपी का शैवाल इतना अधिक active नहीं हो सकता और ना ही इसमें इतनी बड़ी न्यूट्रीएंट्स की ताकत है कि इससे गंगाजल में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा- कई गुना बढ़ जाए। एसटीपी से तो हर साल गंदा पानी बहता ही है - फिर इस साल कोई गंदे पानी का प्रवाह अधिक नहीं था- बल्कि कम ही था। समय अप्रैल-मई महीनों में कुछ तक एसटीपी प्लांट में Break Down भी भी हुआ था। जल में न्यूट्रॉफिकेशन प्रक्रिया का कारण सिर्फ और सिर्फ मरे हुए जानवरों और इंसानों के शवों के कारण ही न्यूट्रिएंट्स में अधिक बढ़ोतरी हुई थी जिसके कारण समूची नदी का जल उस सीमा में हरा हो गया था, जहां शवों की संख्या अधिक पाई गई थी।
शैवाल के कारण गंगा का इकोसिस्टम पर बड़ा भारी संकट खड़ा हो गया है। गंगा जल में ऑक्सीजन की कमी अत्यधिक कमी पाई गई जिसके कारण बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) सबसे पहले प्रभावित हो गई।
पानी मे नाइट्रोजन ओर फास्फोरस होना ही नही चाहिए। "डॉ. राम बजाज"
दूसरी मुख्य वजह उसमें रोज गिरने वाला 60 एमएलडी पानी है। सिविर के पानी और शवों के Decompsition होने से पानी में ऑर्गेनिक मेटल अधिक हो जाता है- जो हरे शेवालो का पसन्दिता भोजन है। घूरहा का नाला , रामनगर नाला और मिर्जापुर में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन प्लांट से बहकर इनऑर्गेनिक मेटल गंगा में आने के मुख्य रास्तों हैं जिसके कारण से मौजूद नाइट्रेट - पानी के स्वभाव और उत्पति को बदल देता है।
इस समय गंगा में नाइट्रोजन फास्फोरस बहुत ही अधिक मात्रा में मौजूद है - जबकि पानी में नाइट्रोजन और फास्फोरस होना ही नहीं चाहिए।
पानी में ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम से ज्यादा होना जरूरी हैं जबकि बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) मात्रा 1 लीटर पानी में 3 ग्राम से भी कम होनी चाहिए।
Actual photo captured by our technical team from June 10 to June 14, 2021.
(साइंटिस्ट)
एवं जिओ इंजीनियर एवं टीम के तकनीकी सदस्य दिनेस जोशी व अन्य इंजीनियर ।
Very very scary. If that type of activity really happened then it is very bad for Holy Ganga.
ReplyDeleteशानदार विश्लेषण प्रस्तुत किया आपने सर जहाँ एक और गंगा नदी की धार्मिक मान्यता है जनता इन सब समस्याओं का आंकलन नही कर पाती और आपने इसका तथ्य सहित खंडन किया है यह हितकारी साबित होगा बस सरकार इसे कितना गम्भीरता से लेती है
ReplyDeleteजहां एक तरफ, केंद्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा नदियों के जल को स्वच्छ रखने के लिए अथाह प्रयास हो रहे है और नये नये उपायों को अजमाया जा रहा है वहीं कुछ रुढिवादी अथवा पर्यावरण विरोधी लोग, अपनी पारंपरिक सोच के कारण, इन नदियों के जल को लगातार दुषित करते रहते हैं और सरकार के हर प्रयत्न एवं प्रयोग को विफल बना दे रहे हैं। विडम्बना यह है कि न ये लोग, पाश्चात्य देशों से कोई सीख ले रहे हैं और न ही अपने भारतीय ग्रंथो से...
ReplyDeletePerfect Pridections
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